प्रतिरोध की पटकथा : ‘द सीड ऑफ द सेक्रेड फिग’

एक धर्म राज्य कैसे काम करता है? वह अपने नागरिकों के व्यक्तित्व और उनकी ज़िन्दगी को किस तरह तबाह करता है? अगर आपकी दिलचस्पी इन सवालों में है तो आपको यह फ़िल्म जरूर देखनी चाहिए।

आशुतोष कुमार
साभार : Amazon Prime

एक फ़िल्म के निर्देशन के लिए निर्देशक को कोड़ों की सजा और आठ साल की बामशक्कत क़ैद मिली। बचने के लिए उन्हें गुपचुप देश छोड़कर भागना पड़ा। 28 दिनों तक पैदल पहाड़ नापते हुए उन्होंने सरहद पार की और अपनी जान बचाई।

इस फ़िल्म के सभी कलाकार तरह-तरह के प्रतिबंधों और मुकदमों का सामना कर रहे हैं। फ़िल्म की दो प्रमुख अभिनेत्रियों ने निर्देशक की मदद से किसी तरह यूरोप में जाकर शरण ली। इस फ़िल्म से जुड़े तमाम लोगों पर देशद्रोह जैसे गंभीर आरोप हैं और उनका भविष्य अनिश्चित है।

यह फ़िल्म बेहद खुफ़िया ढंग से बनाई गई—सीमित साधनों, मद्धम रौशनी में और गिने चुने कलाकारों व सहायकों के साथ। निर्देशक ने नकली नाम से लिए गए ब्रॉडबैंड कनेक्शन के जरिए अपने घर से ही इस फ़िल्म का निर्देशन किया। शूटिंग स्थल पर एक नकली स्क्रिप्ट हमेशा तैयार रहती थी कि कोई सरकारी छापा पड़े तो उसे दिखाया जा सके। 

तमाम मुश्किलों के साथ यह फिल्म बनी और दुनिया भर में छा गई। इसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले। 

एक धर्म राज्य कैसे काम करता है? वह अपने नागरिकों के व्यक्तित्व और उनकी ज़िन्दगी को किस तरह तबाह करता है? अगर आपकी दिलचस्पी इन सवालों में है तो आपको यह फ़िल्म जरूर देखनी चाहिए।

ईरान में 2022 से जबरन हिजाब पहनाने के खिलाफ़ लड़कियों का प्रतिरोधी आंदोलन चल रहा है। इस दौरान उन्होंने चौराहों पर अनेकों बार हिजाब जलाए हैं, जुलूस निकाले, नारेबाजी की और नाचा-गाया। उन्होंने लाठियाँ खाईं और गोलियों की बौछारें झेली है। उन्होंने जेलें भुगतीं और शहादतें भी दीं। उनका निर्मम और निर्लज्ज दमन आज तक जारी है। फिर भी, आज ईरान में बिना हिजाब पहने लड़कियाँ हर तरफ़ घूमती दिखाई देती हैं। अब इसे लगभग सामान्य मान लिया गया है। 

सत्ता जितनी क्रूर होती है, वह उतना ही बहादुराना प्रतिरोध पैदा करती है। प्रतिरोध को कुचला जा सकता है, लेकिन हमेशा के लिए नहीं। अगर आप ईरान में चले इस आंदोलन के जज्बे और उसके विराट आकार को जानना-समझना चाहते हैं तो यह फ़िल्म आपके लिए है।

हालाँकि आंदोलन इस फिल्म की पृष्ठभूमि है। वह इसका मुख्य विषय नहीं है। मुख्य विषय है—धर्मराज्य या ‘थियोक्रेसी’ का पाखंडी, अनैतिक षड्यंत्रकारी और दमनकारी रूप। ऐसा राज्य अपने बड़े से बड़े सिपहसालार तक को अपनी आत्मा का सौदा करने के लिए मजबूर करता है।

इस फ़िल्म के केंद्र में इन्वेस्टिगेशन जज का एक किरदार है जो अपने पद और अपनी व परिवार की हिफ़ाज़त के लिए सरकारी इशारे पर बेगुनाह लोगों को सजा-ए-मौत देने तक के लिए मजबूर होता है। 

वह जिस परिवार की सुख-सुविधा के लिए यह सब करता है, वह परिवार खुद ही धीरे-धीरे राज्य की तरह एक दमनकारी और षड्यंत्रकारी निकाय में बदल जाता है। आख़िर में इस परिवार के युवा सदस्य ही इस व्यवस्था के खिलाफ़ बगावत करने पर उतारू हो जाते हैं।

इस फिल्म का नाम है—‘द सीड ऑफ द सेक्रेड फिग’ अर्थात् पवित्र पीपल का बीज। 

जब चिड़ियों की विष्ठा में छुपा हुआ पीपल का बीज किसी पेड़ की डाल पर गिरता है, तो वहीं उसकी जड़ें उगनी शुरू हो जाती हैं। ये जड़ें बढ़ कर धीरे-धीरे धरती में धँसती जाती हैं और अंतत: वह पीपल अपने उस आश्रयदाता पेड़ को निगल कर खुद को स्थापित कर लेता है। 

फिल्म बहुत सधी हुई है। इतनी रोमांचक है कि आप एक बार शुरु करें तो अपनी जगह से हिल नहीं सकते। 

इसे अमेज़न प्राइम पर देखा जा सकता है। इसके निर्देशक हैं—मोहम्मद रसूलअफ़।

The Seed of the sacred fig
साभार : Getty Images

ऊपर दिए गए चित्र में निर्देशक कान्स फ़िल्म फेस्टिवल में लापता दो प्रमुख कलाकारों की तस्वीर हाथ में लिए कुछ और कलाकारों के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं।

ये सभी कलाकार महान हैं। बहादुर हैं। विद्रोही हैं।

सलाम बनता है।

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संपादक, आलोचना; दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर
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