भारत-विभाजन की माँग और उस के इर्द गिर्द की राजनीति पर अपनी पार्टी के नज़रिए को स्पष्ट करते हुए डॉक्टर आंबेडकर ने एक महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी थी। आंबेडकर के गंभीर अध्येता रामायन राम ने इस पुस्तक का सन्दर्भ सहित तर्कपूर्ण और वस्तुनिष्ठ विश्लेषण करते हुए यह विचारोत्तेजक आलेख तैयार किया है। यह लेख आंबेडकर द्वारा सावरकर की राजनीति के खुले विरोध को उद्घाटित करता है और दोनों को एक साथ लाने की सभी आशंकाओं का अंत कर देता है। इसे प्राथमिकता के साथ पढ़ा जाना चाहिए।