एक बार नहीं, दो-तीन बार आया था फ़ोन, मगर मैं अपनी इंटर्नशिप में गले-गले तक डूबा था। एक-एक मिनट का टोटा था। सुबह उठते ही अपने खड़खड़िया स्कूटर पर अपना छोटा सफ़ेद कोट और स्टेथो लेकर हॉस्पिटल भागता था। वहीं कैंटीन में कुछ उल्टा-सीधा खा लेता था। दिन देखते ही देखते पता नहीं कहाँ चला जाता था। रात बहुत देर से लौटता था, बस दो-चार घंटे की नींद लेने, और वह नींद भी...। कुत्ते भौंकते हुए पीछा करते थे। शोर मचाती एम्बुलेंसें आती रहती थीं। मेन गेट से लगातार स्ट्रेचर…