क्या हिन्दी में श्रम की स्वानुभूति की कविताएँ भी संभव हैं? अगर हाँ तो उनका रंग श्रम के प्रति सहानुभूति के भाव से लिखी गई कविताओं से किस हद तक और किस तरह अलग होगा? इधर कवि चंद्रमोहन की, जो स्वयं एक सचेत श्रमिक हैं, कुछ अनूठी कविताएँ सामने आई हैं, जिन्हें इस सवाल के जवाब की तरह पढ़ा जा सकता है।