“...सारे जो चरित्र हैं ना, सबके भीतर एक बार्डर है। अंजुम में जेंडर का है, सद्दाम में जाति और धर्म का है, तिलोत्तमा में वो जाति का है, मूसा में…
...नेहा नरूका की कविताएँ क्या हैं? सवालों के छापामार दस्ते हैं। ये…
अभी हम हिंदी के बेमिसाल कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु (4 मार्च 1921…
“...सारे जो चरित्र हैं ना, सबके भीतर एक बार्डर है। अंजुम में जेंडर का है, सद्दाम में जाति और धर्म का है, तिलोत्तमा में वो जाति का है, मूसा में वो कश्मीरी और हिन्दुस्तानी का है, और विप्लव दास गुप्ता में...वो आधा स्टेट है जो सब कुछ को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य…
नामवर जी मानते हैं कि भारत में फ़ासीवादी विचारधारा के बीज खुद भारत की ‘महान परम्परा’ में मौजूद थे, लेकिन ज़रूरी खाद-पानी मुहैया कर उसकी भरपूर फसल उगाने का काम उपनिवेश ने किया। बहुत कम बौद्धिकों के पास यह द्वंद्वात्मक ऐतिहासिक सूझ है। फ़ासीवाद के उपनिवेश और ब्राह्मणवाद के साथ…
...नेहा नरूका की कविताएँ क्या हैं? सवालों के छापामार दस्ते हैं। ये दस्ते बिना किसी चेतावनी के आपको कहीं भी घेर सकते हैं। वे आपकी पाली-पोसी या उपहार में मिली प्यारी धारणाओं पर बड़ी निर्ममता से हमला करते हैं। उनका निशाना अचूक होता है। उनके पास एक नहीं अनेक तरह…
कौन नहीं जानता कि जिस समय देश का संविधान बन रहा था, उस समय हिन्दुत्व की ताक़तें यह गुहार लगा रही थीं कि जब हमारे पास मनुस्मृति है तो फिर एक नये संविधान की क्या ज़रूरत? दूसरी तरफ़ यह भी सच है कि संविधान सभा में जहाँ कई तरह की…
प्रगतिवादी आलोचना यदि इसी प्रकार अपने वैज्ञानिक और रचनात्मक पथ पर अग्रसर होती रहती तो सम्भवतः आज की-सी अराजकता न फैली होती। हमारा आलोचना-साहित्य अधिक सम्पूर्ण और उच्च कोटि का होता। अपने साहित्यिक इतिहास और आधुनिक साहित्य का समुचित मूल्यांकन करने के लिए हमने वैज्ञानिक मान-दंडों की स्थापना करने में…
आर. चेतनक्रान्ति बेसाख़्ता हँसी और बेशऊर आज़ादी से ऊब चुके उस देश के नाराज़ कवि हैं जो और अधिक दुख पीड़ा यातना के लिए हाथ जोड़कर खड़ा हो गया है। 'शोकनाच' और 'वीरता पर विचलित' के बाद उनका नया संग्रह 'आत्मद्रोह' कविता प्रेमियों के बीच चर्चा में है।
“...सारे जो चरित्र हैं ना, सबके भीतर एक बार्डर है। अंजुम में जेंडर का है, सद्दाम में जाति और धर्म का है, तिलोत्तमा में वो जाति का है, मूसा में वो कश्मीरी और हिन्दुस्तानी का है, और विप्लव दास गुप्ता…
नामवर जी मानते हैं कि भारत में फ़ासीवादी विचारधारा के बीज खुद भारत की ‘महान परम्परा’ में मौजूद थे, लेकिन ज़रूरी खाद-पानी मुहैया कर उसकी भरपूर फसल उगाने का काम उपनिवेश ने किया। बहुत कम बौद्धिकों के पास यह द्वंद्वात्मक…
...नेहा नरूका की कविताएँ क्या हैं? सवालों के छापामार दस्ते हैं। ये दस्ते बिना किसी चेतावनी के आपको कहीं भी घेर सकते हैं। वे आपकी पाली-पोसी या उपहार में मिली प्यारी धारणाओं पर बड़ी निर्ममता से हमला करते हैं। उनका…
कौन नहीं जानता कि जिस समय देश का संविधान बन रहा था, उस समय हिन्दुत्व की ताक़तें यह गुहार लगा रही थीं कि जब हमारे पास मनुस्मृति है तो फिर एक नये संविधान की क्या ज़रूरत? दूसरी तरफ़ यह भी…