चौथा पड़ाव अलीगढ़ : कुत्ती ज़िदों को पछाड़ते हुए
कर्मकर्ता और लेखक हिमांशु कुमार की साइकिल यात्राएँ जनसंपर्क और जन-जागरण का जरिया तो हैं ही, वे सार्थक सत्य की उनकी अपनी खोज़ का साधन भी हैं। इधर उन्होंने अपनी…
21वीं सदी की हिन्दी कविता
आलोचना पत्रिका के कविता-अंक की योजना बने हुए साल-भर से अधिक समय हो गया। उस समय सोचा यह गया था कि इसे एक महीने के भीतर तैयार कर लिया जाएगा।…
‘पाकिस्तान’ अथवा ‘भारत का विभाजन’ : डॉ. आंबेडकर के विचारों के कुपाठ के बरक्स
भारत-विभाजन की माँग और उस के इर्द गिर्द की राजनीति पर अपनी पार्टी के नज़रिए को स्पष्ट करते हुए डॉक्टर आंबेडकर ने एक महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी थी। आंबेडकर के गंभीर अध्येता…
भारतीय फासीवाद और प्रतिरोध की संभावना
फासीवाद का सबसे बड़ा लक्षण कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के एक गठबंधन के रूप में काम करने की प्रवृत्ति है। लोकतंत्र में इन तीनों के अलगाव और इनकी स्वायत्तता पर…
वागीश झा : चुप्पी को चुनौती
वागीश भैया मानते थे कि कला का प्रभाव क्षणिक नहीं होना चाहिए। हालाँकि हम उनके द्वारा प्रस्तुत विचारों की परतों को पूरी तरह से नहीं समझ पाए, लेकिन जटिल विचारों…
नीति, नेता, प्रजातन्त्र
‘धर्मबोध’ प्रेरित राजनीति में अस्त्र उठाने और बल प्रयोग की भूमिका बहुत बड़ी है। आधुनिक जगत में सभी युद्धों के पीछे किसी ईमानदार, न्यायोचित और मंगलकामी उद्देश्य की घोषणा की…
श्याम बेनेगल : विद्रोह का सौंदर्य
अपनी पहली ही फ़िल्म ‘अंकुर’ के माध्यम से श्याम बेनेगल ने आंध्र-तेलंगाना के सामन्तों के उद्दंड-अतिक्रमणकारी व्यवहारों और यौनलिप्साओं की आलोचना की। फ़िल्म यह दिखाने में सफल रही कि इसके…
वो आवाज़ जो अब तक सुनाई देती है
मजाज़ की मक़बूलियत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि फ़िरंगी महल के हयातुल्लाह अंसारी और एक और नौजवान रज़ा अंसारी भी उन लोगों में शामिल थे…
हर सुखन इस का इक मक़ाम से है
वीरेनियत के आयोजक कहते हैं कि वीरेनियत एक ‘कविता समारोह नहीं कविता है’। इस कार्यक्रम को नजदीक से महसूस कर वाक़ई ऐसा लगता है कि यह कविता है, समारोह नहीं।
चंद्रमोहन की कविताएँ
क्या हिन्दी में श्रम की स्वानुभूति की कविताएँ भी संभव हैं? अगर हाँ तो उनका रंग श्रम के प्रति सहानुभूति के भाव से लिखी गई कविताओं से किस हद तक…