‘यौनिकता, अश्लीलता और साम्प्रदायिकता’ तथा औपनिवेशिक उत्तर प्रदेश में ‘हिन्दू पहचान’ का निर्माण
“दरअसल ‘स्वच्छ’ और ‘अश्लील’ के आधार पर साहित्य का विभाजन पूरी तरह से एक निरर्थक कोशिश है। इसका हिन्दुस्तान की साहित्यिक परम्पराओं से कोई लेना-देना नहीं था। खोजने से भी…
हिंदी आलोचना का आत्मसंघर्ष और नामवर सिंह
नामवर जी मानते हैं कि भारत में फ़ासीवादी विचारधारा के बीज खुद भारत की ‘महान परम्परा’ में मौजूद थे, लेकिन ज़रूरी खाद-पानी मुहैया कर उसकी भरपूर फसल उगाने का काम…