नीति, नेता, प्रजातन्त्र
‘धर्मबोध’ प्रेरित राजनीति में अस्त्र उठाने और बल प्रयोग की भूमिका बहुत बड़ी है। आधुनिक जगत में सभी युद्धों के पीछे किसी ईमानदार, न्यायोचित और मंगलकामी उद्देश्य की घोषणा की…
श्याम बेनेगल : विद्रोह का सौंदर्य
अपनी पहली ही फ़िल्म ‘अंकुर’ के माध्यम से श्याम बेनेगल ने आंध्र-तेलंगाना के सामन्तों के उद्दंड-अतिक्रमणकारी व्यवहारों और यौनलिप्साओं की आलोचना की। फ़िल्म यह दिखाने में सफल रही कि इसके…
वो आवाज़ जो अब तक सुनाई देती है
मजाज़ की मक़बूलियत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि फ़िरंगी महल के हयातुल्लाह अंसारी और एक और नौजवान रज़ा अंसारी भी उन लोगों में शामिल थे…
हर सुखन इस का इक मक़ाम से है
वीरेनियत के आयोजक कहते हैं कि वीरेनियत एक ‘कविता समारोह नहीं कविता है’। इस कार्यक्रम को नजदीक से महसूस कर वाक़ई ऐसा लगता है कि यह कविता है, समारोह नहीं।
चंद्रमोहन की कविताएँ
क्या हिन्दी में श्रम की स्वानुभूति की कविताएँ भी संभव हैं? अगर हाँ तो उनका रंग श्रम के प्रति सहानुभूति के भाव से लिखी गई कविताओं से किस हद तक…
मधु कांकरिया की कहानी : वह भी अपना देश है
वे ढाका के अनमने से दिन थे। बंद दरवाज़े-सा बंद जीवन। न कोई दस्तक, न कोई पुकार। सुबह थोड़ी कम सुबह होती। उसका मिज़ाज ग़ायब रहता। दोपहर बहुत ज़्यादा दोपहर…
बुलडोज़र गाथा
‘हमारे लोकतंत्र के साथ जो गड़बड़ी है, बुलडोज़र उसका एक अभिलक्षण है। अदालत ने आख़िरकार भौतिक बुलडोज़र पर ग़ौर फ़रमाया है और इसके ग़ैर-क़ानूनी इस्तेमाल को रोकने की कोशिश की…
‘आलोचना’ त्रैमासिकी के अंक-75 पर एक नज़र
'आलोचना' त्रैमासिकी के अंक-75 में ‘कफ़न’ संबंधी बहस को युवा शोधार्थी अदिति भारद्वाज ने आगे बढ़ाया है। बहस में उठे कई बिंदुओं पर विस्तृत राय रखने के अलावा उनके लेख…
नेहरू, ‘पैसिव रिवोल्यूशन’ और ‘इंडियन आइडियोलॉजी’
आधुनिकता को आधुनिकीकरण से अलग करके देखना ज़रूरी है। आधुनिकता में अन्वेषण बहुत ही महत्त्वपूर्ण अंग है। यहाँ पर किसी भी तरह की “मान्यता” की जगह नहीं होती है। आधुनिकता…
योगेन्द्र आहूजा की कहानी : डॉक्टर जिवागो
एक बार नहीं, दो-तीन बार आया था फ़ोन, मगर मैं अपनी इंटर्नशिप में गले-गले तक डूबा था। एक-एक मिनट का टोटा था। सुबह उठते ही अपने खड़खड़िया स्कूटर पर अपना…