अरुंधति रॉय के साथ संजीव कुमार और सत्यानन्द निरुपम की बातचीत

“...सारे जो चरित्र हैं ना, सबके भीतर एक बार्डर है। अंजुम में जेंडर का है, सद्दाम में जाति और धर्म का है, तिलोत्तमा में वो जाति का है, मूसा में…

संजीव कुमार संजीव कुमार

नेहा नरूका की कविताएँ

...नेहा नरूका की कविताएँ क्या हैं? सवालों के छापामार दस्ते हैं। ये दस्ते बिना किसी चेतावनी के आपको कहीं भी घेर सकते हैं। वे आपकी पाली-पोसी या उपहार में मिली…

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आंचलिक और राष्ट्रीय के द्विचर से परे

कौन नहीं जानता कि जिस समय देश का संविधान बन रहा था, उस समय हिन्दुत्व की ताक़तें यह गुहार लगा रही थीं कि जब हमारे पास मनुस्मृति है तो फिर…

आर. चेतनक्रान्ति की कविताएँ

आर. चेतनक्रान्ति बेसाख़्ता हँसी और बेशऊर आज़ादी से ऊब चुके उस देश के नाराज़ कवि हैं जो और अधिक दुख पीड़ा यातना के लिए हाथ जोड़कर खड़ा हो गया है। 'शोकनाच' और 'वीरता पर…

भारत विभाजन: राजनीति, ज्ञान मीमांसा और प्रतिरोध

विभाजन का सम्भव होना ही भारत की प्रसिद्ध गंगा-जमुनी तहजीब और बहुलात्म संस्कृति पर प्रश्नचिह्न लगाने वाली घटना थी। भारतीय सभ्यता की बहुलात्मता का विध्वंस उसके सभी वारिसों की साझा…

‘कोई क्या कल्लेगा?’ : सुधीश-संगत पर एक नातिदीर्घ टिप्पणी

सुधीश पचौरी के साथ हिंदी की दुनिया ने बड़ा अन्याय किया है। कुछ भी लिख-बोल जाते हैं, कोई जवाब देके राज़ी नहीं। बहुत पहले एक वरिष्ठ साथी से एक गॉसिप…

‘आलोचना’ क्यों? शिवदान सिंह चौहान का सम्पादकीय

प्रगतिवादी आलोचना यदि इसी प्रकार अपने वैज्ञानिक और रचनात्मक पथ पर अग्रसर होती रहती तो सम्भवतः आज की-सी अराजकता न फैली होती। हमारा आलोचना-साहित्य अधिक सम्पूर्ण और उच्च कोटि का…

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आलोचना के युवा लेखकों से

हम और आप आलोचना को सभ्यता-समीक्षा के एक साझा उपक्रम के रूप में देखते हैं। हम मानव-सभ्यताओं की एक साझा आलोचना विकसित करने के सहयोगी प्रयास में शामिल हैं। दूसरे…

अकाल का ख़बरनवीस : चित्तप्रसाद के रिपोर्ताज़

“हंग्री बेंगाल चित्तप्रसाद की एक ऐसी रचना है, जिसमें हम उनके मार्मिक लेखों और चित्रों को एक साथ पाते हैं। इस रिपोर्ताज में असहाय और निरन्न जनता की व्यथा-कथा की…

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एक आत्मसाक्षात्कार

दलित लेखन और स्त्री लेखन की अलग श्रेणियाँ बनने का यह दुष्परिणाम है कि आलोचना मात्र की बात आने पर उनका ध्यान ही नहीं आता; जब दलित और स्त्री आलोचना…