मधु कांकरिया की कहानी : वह भी अपना देश है
वे ढाका के अनमने से दिन थे। बंद दरवाज़े-सा बंद जीवन। न कोई दस्तक, न कोई पुकार। सुबह थोड़ी कम सुबह होती। उसका मिज़ाज ग़ायब रहता। दोपहर बहुत ज़्यादा दोपहर…
बुलडोज़र गाथा
‘हमारे लोकतंत्र के साथ जो गड़बड़ी है, बुलडोज़र उसका एक अभिलक्षण है। अदालत ने आख़िरकार भौतिक बुलडोज़र पर ग़ौर फ़रमाया है और इसके ग़ैर-क़ानूनी इस्तेमाल को रोकने की कोशिश की…
‘आलोचना’ त्रैमासिकी के अंक-75 पर एक नज़र
'आलोचना' त्रैमासिकी के अंक-75 में ‘कफ़न’ संबंधी बहस को युवा शोधार्थी अदिति भारद्वाज ने आगे बढ़ाया है। बहस में उठे कई बिंदुओं पर विस्तृत राय रखने के अलावा उनके लेख…
नेहरू, ‘पैसिव रिवोल्यूशन’ और ‘इंडियन आइडियोलॉजी’
आधुनिकता को आधुनिकीकरण से अलग करके देखना ज़रूरी है। आधुनिकता में अन्वेषण बहुत ही महत्त्वपूर्ण अंग है। यहाँ पर किसी भी तरह की “मान्यता” की जगह नहीं होती है। आधुनिकता…
योगेन्द्र आहूजा की कहानी : डॉक्टर जिवागो
एक बार नहीं, दो-तीन बार आया था फ़ोन, मगर मैं अपनी इंटर्नशिप में गले-गले तक डूबा था। एक-एक मिनट का टोटा था। सुबह उठते ही अपने खड़खड़िया स्कूटर पर अपना…
साहित्य में संयुक्त मोर्चा?
मेरा विचार है कि ‘साहित्य में संयुक्त मोर्चा’ केवल कुछ दोस्तों के कृत्रिम उत्साह प्रदर्शन और खयाली पुलाव पकाने से नहीं बनेगा, न वस्तुस्थिति से आँखें मींचकर हथेली पर सरसों…
हरे प्रकाश उपाध्याय की कविताएँ
हरे प्रकाश उपाध्याय एक लंबे समय के बाद इस समाज की सच्चाइयाँ अपनी कविताओं में लेकर आए हैं। ये कविताएँ मजदूरों की कविताएँ हैं। ऐसी कविताएँ इन दिनों चलन के…
अपमानवाद, आतंकवाद और फ़िलिस्तीन
होलोकास्ट की स्मृति को बनाए रखने की जितनी भी कोशिश की जाती हैं वे सभी बिल्कुल जायज हैं। दुनिया में होलोकास्ट जैसी घटनाएँ कभी दुहराई नहीं जानी चाहिए। लेकिन फ़िलिस्तीन…
हिन्दी नवजागरण बनाम निराला
निराला की वैचारिक यात्रा कथित ‘हिन्दी नवजागरण’ के दायरे में शुरू होती है, लेकिन क्रमश: वे इससे टकराते हैं और इसे पार कर भारतीय समाज की आधुनिक विवेक से प्रेरित…
अलविदा फ्रेडरिक जेमसन
वर्तमान समय के सबसे बड़े चिन्तकों में से एक जेमसन अपने पीछे एक बहुत बड़ी दार्शनिक और आलोचकीय विरासत छोड़ गए हैं जिसका हमारे समय, समाज और विश्व-राजनीति पर गहरा…